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|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
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गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।
 गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है। (1). इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही।यही ।पर्वत-पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यही।।यही ।।
अंबर में सिर, पाताल चरण
 
मन इसका गंगा का बचपन
 
तन वरण-वरण मुख निरावरण
इसकी छाया में जो भी है, वह मस्‍तक नहीं झुकाता है ।
ग‍िरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
इसकी छाया में जो भी है, वह मस्‍तक नहीं झुकाता है। ग‍िरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।। (2). अरूणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती। फिर संध्‍या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती।।
अरूणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती ।
फिर संध्‍या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती ।।
इन शिखरों की माया ऐसी
 
जैसे प्रभात, संध्‍या वैसी
अमरों को फिर चिंता कैसी ?
इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्‍त अपनाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
अमरों को फिर चिंता कैसी? इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्‍त अपनाता है। गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।। (3). हर संध्‍या को इसकी छाया सागर-सी लंबी होती है। हर सुबह वही फिर गंगा की चादर-सी लंबी होती है।।
हर संध्‍या को इसकी छाया सागर-सी लंबी होती है ।
हर सुबह वही फिर गंगा की चादर-सी लंबी होती है ।।
इसकी छाया में रंग गहरा
 
है देश हरा, प्रदेश हरा
 
हर मौसम है, संदेश भरा
इसका पद-तल छूने वाला वेदों की गाथा गाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
इसका पद-तल छूने वाला वेदों की गाथा गाता है। गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।। (4). जैसा यह अटल, अडिग-अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी। है अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी।।
जैसा यह अटल, अडिग-अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी ।
है अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी ।।
कोई क्‍या हमको ललकारे
 
हम कभी न हिंसा से हारे
 
दु:ख देकर हमको क्‍या मारे
गंगा का जल जो भी पी ले, वह दु:ख में भी मुसकाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
गंगा का जल जो भी पी ले, वह दु:ख में भी मुसकाता है। गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।। (5). टकराते हैं इससे बादल, तो खुद पानी हो जाते हैं। तूफ़ान चले आते हैं, तो ठोकर खाकर सो जाते हैं।
टकराते हैं इससे बादल, तो खुद पानी हो जाते हैं ।
तूफ़ान चले आते हैं, तो ठोकर खाकर सो जाते हैं ।
जब-जब जनता को विपदा दी
 
तब-तब निकले लाखों गाँधी
 
तलवारों-सी टूटी आँधी
 
इसकी छाया में तूफ़ान, चिरागों से शरमाता है।
 गिरिराज, हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।है ।</poem>
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