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मैं अकेला ही चला था ज़ानिबे मंज़िल मगरकहानी मेरी रूदादे-जहाँ मालूम होती है<br>लोग मिलते गए और कारवाँ बनता गयाजो सुनता है, उसीकी दास्ताँ मालूम होती है<br><br>
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कविता कोश में [[मजरूह सुल्तानपुरीसीमाब अकबराबादी]]
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