{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>रात फिर आंधी आई
घर भर गया सारा
कोना-कोना अट गया धूल से।से । बच्चों की मांमाँ
आज भी भन्नाई कुदरत पर-
'आग लागै रै ईं आंधी गै!'
अलसुबह ही
बेटी लगा रही है झाड़ू
और पत्नी मार रही है पोंछा
पहले जिसने पीट-पीट खाटों को झड़काया।झड़काया ।
मैं झड़क चुकी खाट पर आराम से लेटा
इस इंतजार में कि
घर की धूल निकल जाए तो
घुस जाऊं जाऊँ नहानघर मेंऔर अपने बदन की भी निकालूंनिकालूँ...बांच रहा हूं चंद्रकांत देवताले की कविताएंबड़ा बेटा बांच रहा अखबार इत्मीनान सेऔर छोटा निकल गया है खेलने बाहर।
बाँच रहा हूँ चँद्रकांत देवताले की कविताएँ
बड़ा बेटा बाँच रहा अख़बार इत्मीनान से
और छोटा निकल गया है खेलने बाहर ।
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