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धूप / विनोद स्वामी

150 bytes added, 15:24, 31 अक्टूबर 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= विनोद स्वामी |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>चांदनीआंधी चाँदनीआँधी और बरसात
मेरे घर आने को
तरसते हैं सब
सूरज की पहली किरण
मेरे आंगन आँगन में आकरखोलती है आंख।आँख ।चांदनी चाँदनी को
गोद में उठाकर
यही आंगनआँगनरात -भर करता है प्यार।प्यार ।आंधी आँधी का झौंकाझोंका
भाग कर घुसता है
मेरे घर में
बाबा के फटे कुत्र्ते कुरते कीहिलती बांह बाँह से
लगता है
आंधी आँधी हाथ मिला रही हैबाबा से।से ।आंधीआंगन आँधीआँगन में घंटों
घूमचक्करी खेल कर
मेरे सोते हुए
मासूम बच्चों की
पुतलियों में
रुकने का प्रयास।प्रयास करती है । 
मेरी बीवी के गालों
बच्चों की जांघों
मां माँ की झुर्रियों में
बरसात अपने रंग
खूब दिखाती है।
रोते हुए बच्चे को
अचानक आई
हंसी हँसी जैसा होता है।है । 
तब मुझे लगता है
धूप-चांदनीचाँदनीआंधी आँधी और बरसात
छोड़कर
नहीं जाना चाहते
मेरे घर को।को ।
</poem>
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