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कूख पड़यै री पीड़ / किशोर कल्पनाकांत
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15:37, 1 नवम्बर 2010
नांवसोक मन माँय चींत !
द्खाँ, किसीक होवैं परतीत !
इयाँ
कितराक दिन चालसी
पाखण्ड - तणो वंस ?
छेवट, इण बजराक सूं मरयां सरसी कंस !
अनिल जनविजय
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