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कपड़े के जूते / आलोक धन्वा
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आलोक धन्वा
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आलोक धन्वा
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Poem
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रेल की चमकती हुई पटकरियों के किनारे
वे कपड़े के पुराने जूते हैं
अनिल जनविजय
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