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कपड़े के जूते / आलोक धन्वा

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|रचनाकार = आलोक धन्वा |संग्रह=दुनिया रोज़ बनती है / आलोक धन्वा
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रेल की चमकती हुई पटकरियों के किनारे
वे कपड़े के पुराने जूते हैं
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