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पद / गोरखनाथ

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रहता हमारै गुरु बोलेये, हम रहता का चेला ।
 
मन मानै तौ संगि फिरै, निंहतर फिरै अकेला ।।
जहाँ जोग तहाँ रोग न व्यापै, ऐसा परषि गुर करनां ।
 
तन मन सूं जे परचा नांही, तौ काहे को पचि मरनां ।।
काल न मिट्या जंजाल न छुट्या, तप करि हुवा न सूरा ।
 
कुल का नास करै मति कोई, जै गुर मिलै न पूरा ।।
सप्त धात्त का काया पींजरा, ता महिं जुगति बिन सूवा ।
 
सतगुर मिलै तो ऊबरै बाबू, नहीं तौ परलै हूवा ।
कंद्रप रूप काया का मंडण, अँबिरथा कांई उलींचौ ।
 
गोरष कहैं सुणौं रे भौंदू, अंरड अँमीं कत सींचौ ।
ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,
 
आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर
 
निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !
 
धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर
 
कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपारा
 
सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !
 
सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,
 
छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !
 
साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,
 
अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !
 
देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,
 
ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !
 
चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,
 
क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !
 
गोरख आया !
 
आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!
 
जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !
 
भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !
 
आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !
 
जटाजूट जागी झटकाया,गोरख आया !
 
नजर सधी अरु, बिखरी माया,गोरख आया !
 
नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,
 
भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !
 
एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,
 
करम धरमकी सिमटी काया,गोरख आया !
 
गगन घटामेँ एक कडाको,बिजुरी हुलसी,
 
घिर आयी गिरनारी छाया,गोरख आया !
 
लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,
 
बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !
  "बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट, 
जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट!"
(-- पद्मावत )
 
 
 
 
ऊँ सबदहि ताला सबदहि कूची सबदहि सबद भया उजियाला।
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