Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र }} {{KKCatGhazal}} <poem> रात आँखों में ढली पलकों पे ज…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनूँ आए
हम हवाओं की तरह जाके उसे छू आए

बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक
कोई ख़ुशबू में लगाऊँ तेरी ख़ुशबू आए

उसने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मेरी आँखों में आँसू आए

मेरा आईना भी अब मेरी तरह पागल है
आईना देखने जाऊँ तो नज़र तू आए

किस तकल्लुफ़ से गले मिलने का मौसम आया
कुछ काग़ज़ के फूल लिए काँच के बाजू आए

उन फ़कीरों को ग़ज़ल अपनी सुनाते रहियो
जिनकी आवाज़ में दरगाहों की ख़ुशबू आए

</poem>