[[अदालत में औरत]]{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita}}<poem>सर्दियों की उदास शाम
काला कोट पहनना ही चाहती है
शाम के रंग में घुली-मिली औरत
उसके जाने के बाद
उसे ख्यालों से झटकने के लिए
मैनें मैंने सर हिलाया
अदालत की पुरानी मोरचा खाई इमारत
अँधेरे की चादर ओढ़कर
लगभग
अदृश्य हो चुकी थी. ।
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