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बेवकूफी के शगल / कुमार सुरेश

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार== बेवकूफी के शगल कुमार सुरेश}}{{KKCatKavita‎}}<poem>रसिक हैं वे
याद हैं
मोहम्मद रफी रफ़ी के गाने गुनगुनाते गाहे -बगाहे स्त्री स्टेनो में उनकी रुची रुचि चर्चा का बिषय विषय
नृत्य से प्रेम उन्हें
देखते फिल्मों फ़िल्मों में
संगीत उनकी दीवानगी
सुनते कर कार में ऍफ़ ऍम ऍफ़० ऍम०
शास्त्रीय टूं टूँ-टा से परहेज
बतातें
उनका शगल
जिनके टाइम की नही कीमत क़ीमत
अच्छा तो आप कवि हैं
कहना
मुस्कराना वयंग्य व्यंग्य से
उनकी अदा
कवि गर जूनियर नौकरी में
पार्टियों के लिए करते खर्च
फिल्मों फ़िल्मों के लिए भी
शराब पीते उम्दा
हर शौक लाजबाब
साहित्य नहीं खरीदते
हिन्दी नाटक नही देखते
कला प्रदर्शिनी -प्रदर्शनी नही
जाते नहीं भारत -भवन
पूछा उनसे
बोले
अक्ल गयी गई नहीं
अभी घास चरने
कि बेवकूफी के शगल
करने लगें
   </poem> ==
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