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कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये / बशीर बद्र
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12:33, 7 नवम्बर 2010
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब
नाक़ाम
नाकाम
हो जाये
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये
द्विजेन्द्र द्विज
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