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जीवन जहाँ / गोपालदास "नीरज"

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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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{{KKCatKavita‎}}<poem>जीवन जहाँ खत्म हो जाता !<br>उठते-गिरते,<br>जीवन-पथ पर<br>चलते-चलते,<br>पथिक पहुँच कर,<br>इस जीवन के चौराहे पर,<br>क्षणभर रुक कर,<br>सूनी दृष्टि डाल सम्मुख जब पीछे अपने नयन घुमाता !<br>जीवन वहाँ ख़त्म हो जाता !<br/poem>
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