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{{KKRachna
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
}}{{KKCatKavita‎}}<poem>अब बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना!टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरीछूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी,इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तोद्वार तक आकर हमारे लौट जाना!अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!
अब बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना!<br>टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी<br>छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी,<br>इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो<br>द्वार तक आकर हमारे लौट जाना!<br>अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!<br><br>देख लूं मैं भी कि तुम कितने निठुर हो,<br>किस कदर इन आँसुओं से बेखबर हो,<br>इसलिए जब सामने आकर तुम्हारे<br>मैं बहाऊँ अश्रु तो तुम मुस्कुराना।<br>अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!<br><br> जान लूं मैं भी कि तुम कैसे शिकारी,<br>चोट कैसी तीर की होती तुम्हारी,<br>इसलिए घायल हृदय लेकर खड़ा हूँ<br>लो लगाओ साधकर अपना निशाना!<br>अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!<br><br> एक भी अरमान रह जाए न मन में,<br>औ, न बचे एक भी आँसू नयन में,<br>इसलिए जब मैं मरूं तब तुम घृणा से<br>एक ठोकर लाश में मेरी लगाना!<br>अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!! <br/poem>
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