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{{KKRachna
|रचनाकार=बिरजीस राशिद आरफ़ी
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<poem>
रेत के कनस्तर से पानी डालने वाले
बस्तियाँ जलाते हैं पानी डालने वाले

अहतियात <ref>सावधानी</ref> लाज़िम है दोस्त और दुश्मन से
ज़ह्र खींच लेते हैं पानी डालने वाले

ताज़ की तरह अपने घर बनाओ, फ़नकारो!
अब कभी न आएँगे हाथ काटने वाले

ऐ मेरे वतन वालो तुम जो एक हो जाओ
टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ हमको बाँटने वाले

आज जिनके जिस्मों पर रेशमीन कपड़े हैं
कल थे मेरे ऐबों पर पर्दा डालने वाले

ऐ मेरे ख़ुदा उनको उम्रे-जाविदाँ<ref>कभी न ख़त्म होने लम्बी उम्र</ref> देना
जो बुज़ुर्ग ज़िन्दा हैं मुझको डाँटने वाले

और कुछ नहीं ‘राशिद’ तेरी ख़ुशनसीबी है
ख़ूब प्यार देते हैं तुझको चाहने वाले

</poem>
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