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नील / नवारुण भट्टाचार्य
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04:07, 17 नवम्बर 2010
कलेजे में खिलते हैं प्रतिहिंसा के फूल
रक्त और स्मृति के बीच
मैं ज़रूर ढूँढ लूँगा कोई मेलमैं हूँ तेरा सहज शुभाकांक्षी,
नील
।
नील।
प्रचण्ड लहरों ने सीने में जकड़ा था वह शव
बर्छी की नोक जैसी तीखी हवा में
तुम्हें फिर से छू लूँगा, नील।
द्विजेन्द्र द्विज
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