Changes

{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपनी अपनी ख़ूबियाँ और खामियाँ ख़ामियाँ भी बाँट लें शोहरते शोहरतें तो बाँट लीं रुसवाइया रुसवाइयाँ भी बाँट लें
बाँट लीं आसानियाँ, दुश्वावारियाँ भी बाँट लें
बँट गया है घर का आँगन, खेत सारे बँट गए
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतिया परतियाँ भी बाँट लें
कल अगर मिल बाँट के खाए थे तर लुक्मे तो आज
दर्द, आँसू, बेक़रारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे
इश्क़ मे में हम अपनी-अपनी पारियाँ भी बाँट लें
</poem>