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उनको प्रणाम / नागार्जुन

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|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन
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जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।
कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्टजिनके अभिमंत्रित तीर हुए;रण की समाप्ति के पहले हीजो नहीं हो सके पूर्ण–काम<br>वीर रिक्त तूणीर हुए !मैं उनको करता हूँ प्रणाम।<br><br>प्रणाम !
कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट<br>जो छोटी–सी नैया लेकरजिनके अभिमंत्रित तीर हुएउतरे करने को उदधि–पार;<br>रण मन की समाप्ति के पहले मन में ही<br>रही¸ स्वयंजो वीर रिक्त तूणीर हुएहो गए उसी में निराकार !<br>उनको प्रणाम!<br><br>
जो छोटी–सी नैया लेकर<br>उच्च शिखर की ओर बढ़ेउतरे करने को उदधि–पाररह–रह नव–नव उत्साह भरे;<br>मन की मन में ही रही¸ स्वयं<br>पर कुछ ने ले ली हिम–समाधिहो गए उसी में निराकारकुछ असफल ही नीचे उतरे !<br>उनको प्रणाम!<br><br>
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े<br>एकाकी और अकिंचन होरह–रह नव–नव उत्साह भरेजो भू–परिक्रमा को निकले;<br>पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि<br>हो गए पंगु, प्रति–पद जिनकेकुछ असफल ही नीचे उतरेइतने अदृष्ट के दाव चले !<br>उनको प्रणाम<br><br>!
एकाकी और अकिंचन हो<br>कृत–कृत नहीं जो भू–परिक्रमा को निकलेहो पाए;<br>हो प्रत्युत फाँसी पर गए पंगु, प्रति–पद जिनके<br>झूलइतने अदृष्ट के दाव चलेकुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भीयह दुनिया जिनको गई भूल !<br>उनको प्रणाम<br><br>!
कृत–कृत नहीं जो हो पाएथी उम्र साधना, पर जिनकाजीवन नाटक दु:खांत हुआ;<br>प्रत्युत फाँसी पर गए झूल<br>या जन्म–काल में सिंह लग्नकुछ पर कुसमय ही दिन बीते हैं¸ फिर भी<br>यह दुनिया जिनको गई भूलदेहांत हुआ !<br>उनको प्रणाम!<br><br>
थी उम्र साधना, पर जिनका<br>दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस केजीवन नाटक दु:खांत हुआ;<br>या जन्म–काल में सिंह लग्न<br>जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?पर कुसमय ही देहांत हुआनिरवधि बंदी जीवन नेजिनकी धुन का कर दिया अंत !<br>उनको प्रणाम<br><br>!
दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के<br>जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत?<br>पर निरवधि बंदी जीवन ने<br>जिनकी धुन का कर दिया अंत!<br>उनको प्रणाम!<br><br> जिनकी सेवाएँ अतुलनीय<br>पर विज्ञापन से रहे दूर<br>प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके<br>कर दिए मनोरथ चूर–चूर!<br>उनको प्रणाम! <br><br/poem>
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