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{{KKRachna
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"|संग्रह=अणिमा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
{{KKCatKavitaKKCatNavgeet}}<poem>स्नेह-निर्झर बह गया है!<br>रेत ज्यों तन रह गया है।<br><br>है ।
आम की यह डाल जो सुखी सूखी दिखी,<br>कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी<br>नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी<br>नहीं जिसका अर्थ-"<br>:: जीवन दह गया है।<br><br>है ।"
"दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,<br>किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;<br>पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-<br>-ठाट जीवन का वही<br>:: जो ढह गया है।<br><br>है ।"
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,<br>श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।<br>निरुपमा ।बह रही है हृदय पर केवल अमा;<br>मै अलक्षित हूँ; यही<br>:: कवि कह गया है।<br>है ।<br/poem>
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