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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
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<poem>
::(गीत)जीवन चिरकालिक क्रन्दन।क्रन्दन । 
मेरा अन्तर वज्रकठोर,
देना जी भरसक झकझोर,
तम-निशि न कभी हो भोर,
क्या होगी इतनी उज्वलता-
इतना वन्दन अभिनन्दन? 
हो मेरी प्रार्थना विफल,
हृदय-कमल-के जितने दल
मेरा जग हो अन्तर्धान,
तब भी क्या ऐसे ही तम में
अटकेगा जर्जर स्यन्दन?
</poem>
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