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वे चाहेंगे मुझे मरा हुआ देखना

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|रचनाकार=महमूद दरवेश
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वे चाहेंगे मुझे मरा हुआ देखना, कहने को : वह हमारा है, हमारा
बीस सालों तक मैंने उनके कदमों की चाप सुनी है रात की दीवारों पर
वे कोई दरवाज़ा नहीं खोलते, लेकिन फ़िलहाल वे यहां हैं. मुझे उनमें से तीन दिखाई पड़ते हैं:
एक कवि, एक हत्यारा और किताबों का एक पाठक.
क्या आप थोड़ी वाइन पिएंगे? मैंने पूछा.
हां, उन्होंने जवाब दिया.
आप मुझे गोली कब मारने की सोच रहे हैं? मैंने पूछा.
इत्मीनान रखो, उन्होंने उत्तर दिया.
उन्होंने अपने गिलासों को एक कतार में रखा और लोगों के लिए गाना शुरू किया.
मैंने पूछा: आप मेरी हत्या कब शुरू करेंगे?
वह तो हो चुकी, उन्होंने कहा ... तुमने अपनी आत्मा से पहले अपने जूते क्यों भेजे?
ताकि वह धरती की सतह पर टहल सके, मैंने कहा
धरती दुष्टता की हद तक काली है, तुम्हारी कविता इतनी सफ़ेद कैसे है?
क्योंकि मेरे हृदय में तीस समुद्र उफन रहे हैं, मैंने जवाब दिया.
उन्होंने पूछा : तुम फ़्रेंच वाइन को प्यार क्यों करते हो?
क्योंकि मुझे सुन्दरतम स्त्रियों से प्यार करना होता है, मैंने जवाब दिया.
उन्होंने पूछा: तुम किस तरह की मौत चाहोगे?
नीली, जिस तरह तारे उड़ेले जाते हैं एक खिड़की से - क्या आप और वाइन पसन्द करेंगे?
हां, हम पिएंगे, वे बोले.
कृपया इत्मीनान से अपना समय लीजिये. मैं चाहता हूं आप मुझे धीरे धीरे कत्ल करें ताकि मैं
अपनी प्यारी पत्नी के लिए अपनी आख़िरी कविता लिख सकूं. वे हंसे और उन्होंने छीन लिए मुझसे
फ़क़त वे शब्द जो समर्पित थे मेरी प्यारी पत्नी को.


'''अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
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