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साँचा:KKPoemOfTheWeek

134 bytes removed, 18:05, 18 नवम्बर 2010
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : फूलों का गजरामैं अकेला<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रमेश तैलंगसूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
बहनामैं अकेला;देखता हूँ, तेरी चोटी मेंआ रहीफूलों का गजरा मेरे दिवस की सान्ध्य बेला
फूलों के गजरे नेपके आधे बाल मेरेघर-भर महकायाहुए निष्प्रभ गाल मेरे,बतलानाचाल मेरी मन्द होती आ रही, बतलानाकौन इसे लाया ?साँसों में छोड़ गयाख़ुशबू का लहरा हट रहा मेला
गजरे में फूल खिलेबेला-जुही केजानता हूँ,नदी-झरनेआँखों में तेरी हैंआँसू खुशी केजो मुझे थे पार करने,चेहरे पर बिखरा हैकर चुका हूँ, हँस रहा यह देख,जादू सुनहरा कोई नहीं भेला
तुझ पर ही नज़रें हैंशब्दार्थ: छोटे-बड़ों भेला = पुराने ढंग की,नावबात हुई बहना,आज क्या अनोखी ?क्या इसमें है कोईराज बड़ा गहरा ?
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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