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[[Category: दोहा]]
<poem>
प्रीतम भेजी बादळी, इण में मीन न मेख ।
बरसण मिस झुरै खड़ी धण विळवंती देख ।।61।।
प्रीतम भेजी बादळी, इण में इस बादली को प्रियतम ने भेजा है । इसमें मीन न मेख।बरसण -मेख नही है । धन्या को विलाप करते हुए देख कर यह बरसने के मिस झुरै खड़ी धण विळवंती देख।। 61।।रो रही है ।
इस बादली को प्रियतम ने भेजा है। इसमें मीन-मेख नही है। धन्या को विलाप करते हुए देख कर यह बरसने के मिस रो रही है।भेट्यां डूंगर खरदरा खररो हुयो सुभाव ।भाजै गाजै गड़गडै तेज दिखावै ताव ।।62।।
भेट्यां डूंगर खरदरा खररो हुयो सुभाव।भाजै गाजै गड़गडै तेज दिखावै ताव।। 62।।ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों से संपर्क रखने के कारण बादली का स्वभाव भी कड़ा हो गया है । तभी तो यह दौड़ती है, "गड़-गड़" शब्द करके गरज़ती है तथा तेज़ ताव दिखाती है ।
ऊबड़पड़ड़-खाबड़ पहाड़ो से संपर्क रखने के कारण बादली का स्वभाव भी कड़ा हो गया है। तभी तो यह दौड़ती हैपड़ड़ बूंदां पड़ै, ‘‘गड़गड़ड़-गड़‘‘ शब्द करके गरजती है तथा तेज ताव दिखाती है।गड़ड़ घण गाज ।कड़ड़-कड़ड़ बीजळ करै, धड़ड़-धड़ड़ धर आज ।।63।।
पड़ड़-पड़ड़ बूंदां पड़ैकरती हुई बूँदे पड़ रही हैं, गड़ड़-गड़ड़ घण गाज।गड़ड करते हुए बादल गरज रहे हैं, कड़ड़-कड़ड़ बीजळ करै, कड़ड करती हुई बिजली चमक रही है और धरा पर आज चारों ओर धड़ड़-धड़ड़ धर आज।। 63।।धड़ड की आवाज़ हो रही है ।
‘‘ पड़ड़-पड़ड़ ’’ शब्द करती हुई बूंदे पड़ रही है, ‘‘ गड़ड़-गड़ड ‘‘ करते हुए बादल गरज रहे है, ’’ कड़ड़-कड़ड ‘‘ करती हुई बिजलियां चमक रही है और धरा पर आज चारों ओर ’’ धड़ड़-धड़ड ‘‘ की आवाज हो रही है।परनाळां पानी पड़ै नाळा चळवळिया ।पोखर आस पुरावणा खाळा खळवळिया ।।64।।
परनाळां छतों के नालों से गिरता हुआ पानी पड़ै नाळा चळवळिया।पोखर आस पुरावणा खाळा खळवळिया।। 64।।छोटी नालियों में कूदता हुआ बड़े नालों में मिलकर बहता है और तालाबों की आशा पूरी करता है ।
छतों के नालों से पड़ता हुआ पानी छोटी नालियों में कूदता हुआ बड़े नालों में मिलकर बहता है और तालाबों की आशा पूरी करता है।टप-टप चूवै आसरा टप-टप विरही नैण ।झप-झप पळका बीज रा झप-झप हिवड़ो सैण ।।65।।
टप-टप चूवै आसरा टप-टप विरही नैण।झप-झप पळका बीज रा कमरों की छतें टपक टपक चू रही है और इसी प्रकार विरहिनियों के नयन भी । बिजली का प्रकाश झप-झप हिवड़ो सैण।। 65।।कर रहा है और इसी प्रकार साजन का हृदय भी ।
कमरों की छतें टपक टपक चू रही है और इसी प्रकार विरहिनियों के नयन भी। बिजली का प्रकाश झप-झप कर रहा है और इसी प्रकार साजन का हृदय भी।छातां पर पाणी पड्यो परनाळां न समायं ।वळ खाता वाळा वगै खाळां जोडां मांय ।।66।।
छातां छतों पर पाणी पड्यो परनाळां न समायं।वळ खाता वाळा वगै खाळां जोडां मांय।। 66।।पड़ा हुआ पानी नालियों में नही समा रहा है । बल खाते हुए छोटे नाले बड़े नालों और तालाबों में जा मिलते हैं ।
छतों चोवै कच्चा आसरा पड़वै कीच अपार ।ले माटी नर पूगिया छातां पर पड़ा हुआ पानी नालियों में नही समा रहा है। बल खाते हुए छोटे नाले बड़े नालों और तालाबों में जा मिलते हैउण वार ।।67।।
चोवै कच्चा आसरा पड़वै कीच अपार।ले माटी नर पूगिया छातां कच्चे मकान चू रहे है और अपार कीचड़ हो रहा है । ऐसे समय में आदमी मिट्टी लेकर छतों पर उण वार।। 67।।पहुँचे ।
कच्चे मकान चू रहे है और अपार कीचड़ हो रहा है। ऐसे समय में आदमी मिट्टी लेकर छतों पर पहूंचे।डांड्यां पाणी सूं भरी रूकिया सारा राह ।पंथी एक न नीसरै घण वरसंतै मांह ।।68।।
डांड्यां पाणी सूं भरी रूकिया सारा राह।पंथी पगडंडियां पानी से भर गई हैं और सारे मार्ग रूक गए हैं। इस ज़ोर की बरसात में एक न नीसरै घण वरसंतै मांह।। 68।।भी पथिक बाहर नही निकलता है ।
पगडंडियां पानी से भर गई है और सारे मार्ग रूक गये है। इस जोर की बरसात में एक भी पथिक बाहर नही निकलता है।चालै पवन अटावरी घिर-घिर बादळ आय ।फुर फटकारा फांक रा जळ ही जळ कर जाय ।।69।।
चालै पवन अटावरी तेज वायु चल रही है और बादल घिर-घिर बादळ आय।फुर फटकारा फांक रा जळ कर आ रहे हैं । जल सहित वायु के झोंके रह-रह कर जल ही जळ जल कर जाय।। 69।।जाते हैं ।
तेज वायु चल रही है और बादल घिर-घिर कर आ रहे है। जल सहित वायु के झोंके रह-रह कर जल आय फांक उतराध री वूठ्यो तकड़ो मेह ।छातां तालां डैरियां जळ ही जल कर जाते है।जळ दीसेह ।।70।।
आय फांक उतराध री वूठ्यो तकड़ो मेह।छातां तालां डैरियां जळ ही जळ दीसेह।। 70।। उतर दिशा को झोंका आया और घनघोर वर्षा होने लगी। लगी । छतों, तालों और डैरों डेरों में सर्वत्र जल ही जल दिखाई देने लगा।लगा ।</poem>
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