Changes

हमने तुम्हारी कविता को हारने नहीं दिया
समूचा देश मिलकर एक नया महाकाव्य लिखने की कोशिश में है
छापामार छंदों में रचे जा रहे हैं सारे अलंकार...  गरज उठें दल मादलप्रवाल द्वीपों जैसे आदिवासी गाँवरक्त से लाल नीले खेतशंखचूड़ के विष -फ़ेन सेआहत तितासविषाक्त मरनासन्न प्यास से भरा कुचिलाटंकार में अंधा सूर्य उठे हुए गांडीव की प्रत्यंचातीक्षण तीर, हिंसक नोकभाला,तोमर,टाँगी और कुठारचमकते बल्लम, चरागाह दख़ल करते तीरों की बौछारमादल की हर ताल पर लाल आँखों के ट्राइबल -टोटमबंदूक दो खुखरी दो और ढेर सारा साहसइतना सहस कि फिर कभी डर न लगेकितने ही हों क्रेन, दाँतों वाले बुल्डोज़र,फौजी कन्वाय का जुलूसडायनमो चालित टरबाइन, खराद और इंजनध्वस्त कोयले के मीथेन अंधकार में सख़्त हीरे की तरह चमकती आँखेंअद्भुत इस्पात की हथौड़ीबंदरगाहों जूटमिलों की भठ्ठियों जैसे आकाश में उठे सैंकड़ों हाथनहीं - कोई डर नहींडर का फक पड़ा चेहरा कैसा अजनबी लगता हैजब जानता हूँ मृत्यु कुछ नहीं है प्यार के अलावाहत्या होने पर मैंबंगाल की सारी मिट्टी के दीयों में लौ बन कर फैल जाऊँगासाल-दर-साल मिट्टी में हरा विश्वास बनकर लौटूँगामेरा विनाश नहींसुख में रहूँगा दुख में रहूँगा, जन्म पर सत्कार परजितने दिन बंगाल रहेगा मनुष्य भी रहेगा......
...</poem>