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वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबलापाई ले ले / फ़राज़
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09:32, 20 नवम्बर 2010
अपने दीवान को गलियों मे लिये फिरता हूँ
है कोई जो हुनर-ए-ज़ख़्मनुमाई ले ले
और क्या नज़्र करूँ ऐ ग़मे-दिलदारे-फ़राज़
ज़िन्दगी जो ग़मे-दुनिया से बचाई ले ले
</poem>
Bohra.sankalp
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