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15:49, 20 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
हर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
एक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए
गुल हमेशा चाहता हमसे रहा बदले में वो
जिसने हमको हर कदम पर बेवजह नश्तर दिए
खो रहे हैं क्यूँ अदावत में उन्हें, ये सोचिये
प्यार करने के खुदा ने जो हमें अवसर दिए
मिल गए हैं रहजनों से लूटने के वास्ते
मुल्क को चुनकर ये कैसे आपने रहबर दिए
कुछ नहीं देती है ये दुनिया किसी को मुफ्त में
नींद ली बदले में जिसको रेशमी बिस्तर दिए
ज़िन्दगी बख्शी खुदा ने माना के "नीरज" हमें
पर लगा हमको कि जैसे खीर में कंकर दिए
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