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{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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दूरियां मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर

सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर

याद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई आँख तर

बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर

गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर

राह, मंजिल हुई उस घड़ी
तुम हुए जिस घड़ी हमसफ़र

घर जला कर मेरा झूमते
दोस्तों की तरह ये शरर

हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
वो जिसे ढूंढती है नज़र
</poem>