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15:50, 20 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
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<poem>
दूरियां मत बढ़ा इस कदर
दूँ सदाएं तो हों बेअसर
सोच मत, ठान ले, कर गुज़र
जिंदगी है बडी मुख़्तसर
याद तेरी हमें आ गयी
मुस्कुराए, हुई आँख तर
बिन डरे सच कहें किस तरह
सीखिये आइनों से हुनर
गर सभी के रहें सुर अलग
टूटने से बचेगा न घर
राह, मंजिल हुई उस घड़ी
तुम हुए जिस घड़ी हमसफ़र
घर जला कर मेरा झूमते
दोस्तों की तरह ये शरर
हैं सभी पास “नीरज” कहाँ
वो जिसे ढूंढती है नज़र
</poem>