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16:03, 20 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अदम गोंडवी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरखान को
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को
</poem>