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17:30, 20 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=संजय मिश्रा 'शौक'
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<poem>
फलक के ये सुरमई सितारे
न जाने कब से चमक रहे हैं
ये इनकी अपनी चमक नहीं है कि इनमें कोई रमक नहीं है
ये सब सितारे जमीं के चेहरे की रौशनी को कशीद करने में मुन्हमिक हैं.
जमीं के चेहरे में जिन्दगी है
जमीं के चेहरे में बंदगी है
जमीं के चेहरे में नूरे-खालिक की खास रहमत है जिसके दम से
जमीं का चेहरा अजल से अब तक चमक रहा है दमक रहा है
ज़मीन वाले इसी चमक से फलक पे अपनी चमक का डंका बजा चुके हैं
फलक जभी तो हज़ार साज़िश के जाल बुनकर
जमीं को अपने हिसार में कैद करने की ज़िद पे कब से तुला हुआ है
फ़रेब खाकर भी खुश हैं सारे ज़मीन वासी
ये माजरा तो समझ की सरहद से माविरा है
मगर जो सोचा
तो ये भी उकदा समझ में आया
दस आसमानों में दस दिशाओं में नूर का जो ये सिलसिला है
ये और कुछ भी नहीं बाबा
यही खुदा है
यही खुदा है</poem>
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