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18:32, 20 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद'
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<poem>
अपनी अपनी खूबिया और खामिया भी बाट ले
शोहरते तो बात ली रुसवाइया भी बाट ले
बाट ली आसानिया, दुशवारिया भी बाट ले
आओ अपनी अपनी ज़िम्मेदारिया भी बाट ले
बट गया है घर का आगन, खेत सारे बट गए
क्यो न अब बन्जर ज़मी और परतिया भी बाट ले
कल अगर मिल बाट के खाए थे तर लुक्मे तो आज
आओ हम अपनी ये सूखी रोटिया भी बाट ले
अपने हिस्से की ज़मी तो दे चुके हमसाए को
अब बताओ क्या हम अपनी वादिया भी बाट ले
दर्द, आसू, बेकरारी इक तरफ़ ही क्यू रहे
इश्क मे हम अपनी अपनी पारिया भी बाट ले</poem>