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ख़ुद अपने दिल को हर एहसास से आरी बनाते हैं / संजय मिश्रा 'शौक'
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03:33, 21 नवम्बर 2010
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खुद अपने दिल को हर एहसास से आरी बनाते हैं
जब इक कमरे में हम कागज़ की फुलवारी बनाते हैं
द्विजेन्द्र द्विज
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