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मैं चाहता हूँ मैं सचमुच अमीर हो{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव भरोल}}{{KKCatGhazal}}<poem>
मैं चाहता हूँ मैं सचमुच अमीर हो जाऊँ,
दुआ करो कि मैं इक दिन फ़कीर हो जाऊँ
जो मेरे बस में हो तेरा ज़मीर हो जाऊँ.
ये जिंदगी के मसाइल भी मेरे हमदम हैं,
मैं तेरी ज़ुल्फ़ का कैसे असीर हो जाऊँ,