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ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आख़र
लोग हर जश्न पे पेहमान मेहमान से पैसा माँगे
कितना लाज़म है मुहब्बत में सलीका ऐ‘अज़ीज़’
ये ग़ज़ल जैसा कोई नर्म-सा लहज़ा माँगे
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