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जीवन की सुनसान डगर में / कुमार अनिल
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13:32, 22 नवम्बर 2010
<Poem>
जीवन की सुनसान डगर में
तनहा हूँ
हेर
हर
एक सफ़र में
हवा, धूप, पानी से बढ़कर
Kumar anil
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