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{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीकांत वर्मा|संग्रह=जलसाघर / श्रीकांत वर्मा }}{{KKCatKavita}}<poem>महामहिम!चोर दरवाजे दरवाज़े से निकल चलियेचलिए !
बाहर
हत्यारे हैं!बहुक्म बहुक़्म आपखोल दिये दिए मैनेंजेल के दरवाजेदरवाज़े,
तोड़ दिया था
करोड़ वर्षों का सन्नाटा
महामहिम!ड़रियेडरिए ! निकल चलियेचलिए !
किसी की आँखों में
हया नहीं
ईश्वर का भय नहीं
कोई नहीं कहेगा
"धन्यवाद"!सबके हाँथों सब के हाथों में
कानून की किताब है
हाथ हिला पूछते हैं,
किसने लिखी थी
यह कानून की किताब?</poem>