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मुस्कराहट में गुलाबों की महक है तो रहे
उसके चेहरे पे अगर अब भी चमक है तो रहे

मैं उजालों को अंधेरों में बदल देता हूँ
यही अफवाह अगर दूर तलक है तो रहे

मैं कसौटी पे चढ़ा, आग से बचकर निकला
मेरे किरदार पे अब भी कोई शक है तो रहे

मुझको अब कोई भी एहसास नहीं होता है
तेरे दिल में अभी हलकी सी कसक है तो रहे

शहर का शहर अंधेरों का पुजारी है अब
कुछ दिमागों में बगावत की सनक है तो रहे

जब उमस बढ़ने लगी थी तो खड़े थे चुपचाप
अब तेरे बाग़ के पेड़ों में लचक है तो रहे

चाह मंजिल की तुझे है तो बढ़ा चल सर्वत
रास्ता तेरा गर सुनसान सडक है तो रहे </poem>