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बचपन / कविता गौड़
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05:40, 23 नवम्बर 2010
कहीं खो गया है बचपन
गलियों में रो रहा है बचपन
होटलों में ढाबों में धो रहा है बरतन
काँच की चूड़ियों में पिरो रहा है शबनम
बीड़ियों में तंबाखू समो रहा है बचपन
गोदियों में बचपन खिला रहा है बचपन
योजनाएँ सारी ध्वस्त है
अनिल जनविजय
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