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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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<poem>

विजन-वन-वल्लरी पर<br>
सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न--<br>
अमल- कोमल -तनु तरुणी--जुही की कली,<br>
दृग बन्द किये, शिथिल--पत्रांक में,<br>
वासन्ती निशा थी;<br>
विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़<br>
किसी दूर देश में था पवन<br>
जिसे कहते हैं मलयानिल।<br>
आयी याद बिछुड़न से मिलन की वह मधुर बात,<br>
आयी याद चाँदनी की धुली हुई आधी रात,<br>
आयी याद कान्ता की कमनीय गात,<br>
फिर क्या ? पवन <br>
उपवन-सर-सरित गहन -गिरि-कानन<br>
कुञ्ज-लता-पुञ्जों को पार कर<br>
पहुँचा जहाँ उसन की केलि<br>
कली खिली साथ।<br>
सोती थी,<br>
जाने कहो कैसे प्रिय-आगमन वह ?<br>
नायक ने चूमे कपोल,<br>
डोल उठी वल्लरी की लड़ी जैसे हिंडोल।<br>
इस पर भी जागी नहीं,<br>
चूक-क्षमा माँगी नहीं,<br>
निद्रालस बंकिम विशाल नेत्र मूँदे रही--<br>
किंवा मतवाली थी यौवन की मदिरा पिये,<br>
कौन कहे ?<br>
निर्दय उस नायक ने <br>
निपट निठुराई की<br>
कि झोंकों की झाड़ियों से<br>
सुन्दर सुकुमार देह सारी झकझोर डाली,<br>
मसल दिये गोरे कपोल गोल;<br>
चौंक पड़ी युवती--<br>
चकित चितवन निज चारों ओर फेर,<br>
हेर प्यारे को सेज-पास,<br>
नम्र मुख हँसी-खिली,<br>
खेल रंग, प्यारे संग।<br>
</poem>