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12:00, 23 नवम्बर 2010 {KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
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<poem>
टूटें सकल बन्ध
कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध।
रुद्ध जो धार रे
शिखर - निर्झर झरे
मधुर कलरव भरे
शून्य शत-शत रन्ध्र।
रश्मि ऋजु खींच दे
चित्र शत रंग के,
वर्ण - जीवन फले,
जागे तिमिर अन्ध।
</poem>