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नई औरत / पंखुरी सिन्हा
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11:06, 24 नवम्बर 2010
<Poem>
''' नई औरत '''
वह क्षण भर भी नहीं
उसका एक बारीक़-सा टुकड़ा था बस,
Dr. Manoj Srivastav
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