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13:11, 24 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मनीष मिश्र
|संग्रह=
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<poem>
बड़ी होती बेटी के साथ
छोटा पड़ता जाता है समय
छोटा होता जाता है घर।
उसके छोटे-छोटे हाथों से फिसलकर
बड़ी होती जाती है जिन्दगी।
बड़ी हो जाती हैं उसकी आँखें
छोटे-छोटे कौतुहल समेटे।
</poem>