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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|संग्रह=समंदर ब्याहने आया नहीं है / जहीर कुरैशी
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<poem>

किताबों में तो सब कुछ ही लिखा है
किताबें कौन पढ़ना चाहता है

सुनिश्चित है वो मुँह के बल गिरेगा
बिना पंखों के उड़ने चला है

कली से फूल बनते ही अचानक
कली को मुस्कुराना आ गया है

मुझे दुर्भाग्य से लड़ना पड़ेगा
मेरे सम्मुख यही अब रास्ता है

उसे विज्ञान में कहते हैं घर्षण
जो हर चलते हुए को रोकता है

सुना है वो नशा करता नहीं है
ये सच है उसको सत्ता का नशा है

ये स्पर्धा का युग है, इस लिए ही
जहाँ देखो वहीं प्रतियोगिता है

</poem>