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जल विरह / संतोष मायामोहन
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09:02, 29 नवम्बर 2010
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{{KKCatKavita}}
<Poem>जब गिरती है
बूंद
बूँद
पृथ्वी तल
छम-छम नाचता है जल ।
हर्षित होती है बावड़ी
बरसने की आशा
जी उठता है जल
गर ना बरसे
तो सूक मरे
अनिल जनविजय
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