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सभ्यता / संतोष मायामोहन
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09:04, 29 नवम्बर 2010
खड़े हैं
दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान
मैं देखती
हूं
हूँ
इन्हें
और मापने लगती हूँ
किसी भविष्य के "थेह"
अनिल जनविजय
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