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सच्च बताना साईं / पद्मा सचदेव

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बम-गोली-बन्दूक उतारो
इन की आँखों में न मारो
ख़ुशबख़ुशबुओं में राख उड़े नआगे आगे क्या होना है जम्मू आँखों में है रहतायहाँ जाग कर यहीं है सोतामैं सौदाई गली गली मेंमन की तरह घिरी रहती हूँक्या कुछ होगा शहर मेरे काक्या मंशा है क़हर तेरे काअब न खेलो आँख मिचौलीआगे आगे क्या होना है दरगाह खुली , खुले हैं मन्दिरह्रदय खुले हैं बाहर भीतरशिवालिक पर पुखराज है बैठामाथे पर इक ताज है बैठासब को आश्रय दिया है इसनेईर्ष्या कभी न की है इसनेप्यार बीज कर समता बोईआगे आगे क्या होना है
</poem>
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