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10:45, 6 दिसम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाला जगदलपुरी
|संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश / लाला जगदलपुरी
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<poem>
न तुम हो, न हम हैं
यहाँ भ्रम ही भ्रम हैं।
दिशाहीन राहें,
भटकते कदम हैं।
नहीं कोई ब्रम्हा,
कई क्रूर यम हैं।
मिले सर्जना को,
गलत कार्यक्रम हैं।
यहाँ श्रेष्ठता में,
पुरस्कृत अधम हैं।
किसी के भी दुखडे
किसी से न कम हैं।
पुकारा जिन्होंने,
अरे, वे वहम हैं।
</poem>