साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि।
सरजा सिवाजी जंग जीवन जीतन चलत है।।
भूषन भनत नाद विहद नगारन के।
ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,
गाजन गजन की ठेल-पेल सैल उसलत हैं।
तारा सों तरनि घूरि धरा में लगत लIगत जिम,
धारा धरा पर पारा पारावार ज्यों हलत हैं।
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