अभीष्ट / गिरधर राठी

हमारी इच्छाएँ सरल हैं जिन में

जुड़ती चली जाती हैं कुछ और सरल

इच्छाएँ


हमें घर दो घर दो घर दो

हम कहते हैं बार-बार

अनमने मन से


हमें घर दो


सरकार हो या ईश्वर या पड़ोसी

हम सभी से कहते हैं

घर दो


दो हमें दीवारें जिन के दरम्यान

जिलाए जा सकते हैं भ्रूण

खुल खेल सकते हैं पाप जो

चहारदीवारी के बाहर अपराध हैं


यह सिर्फ़ एक मिसाल है हमारी

सरलतम इच्छाओं की

अकारादि क्रम से इनकी सूची बन सकती है


बीच-बीच में आता रहेगा ज्ञान

और अंत में अंतिम इच्छाओं की

एक और सूची...

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