एक दिन / आरती तिवारी

उन्होंने कहा बड़ी हो रही है
तुम्हारी लड़की
उसे सलवार कमीज़ पहनना सिखाओ
ढंग से दुपट्टा ओढ़े
कोयल सी न कूके
हंसे न ज़ोर से बात बेबात
नज़रें नीची रखकर चले
हटा लो लड़कों के स्कूल से
बहुत पढ़ ली
कामकाज में माँ का हाथ बटाये

लड़की चुप रही
नही कही मन की बात
माँ बाप को चुभी
कील सी
दीवार बन सहती रही
कील होने का दर्द

प्यार की बरबादियाँ
समय के धरातल पर
समानान्तर रेखाओंं सी
खिची रहीं
नाटक का उपसंहार जाने बिना
खापों के थोपे नियमो का वहिष्कार कर
घर से भाग ही गई एक दिन

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