हम तुम्हारे लिए रहें फिरते।
आँख तुम ने न आज तक फेरी।
हम तुमें चाहते रहेंगे ही।
चाह चाहे तुमें न हो मेरी।

पेड़ हम हैं, मलय-पवन तुम हो।
तुम अगर मेघ, मोर तो हम हैं।
हम भँवर हैं, खिले कमल तुम हो।
चन्द जो तुम, चकोर तो हम हैं।

कौन है जानकर तुम जैसा।
है हमारा अजान का बाना।
तुम हमें जानते जनाते हो।
नाथ हम ने तुमें नहीं जाना।

तुम बताये गये अगर सूरज।
तो किरिन क्यों न हम कहे जाते।
तो लहर एक हम तुम्हारी हैं।
तुम अगर हो समुद्र लहराते।

तब जगत में बसे रहे तुम क्या।
जब सके आँख में न मेरी बस।
लग न रस का सका हमें चसका।
है तुम्हारा बना बनाया रस।

हम फँसे ही रहे भुलावों में।
तुम भुलाये गये नहीं भूले।
नित रहा फूलता हमारा जी।
तुम रहे फूल की तरह फूले।

है यही चाह तुम हमें चाहो।
देस-हित में ललक लगे हम हों।
रंग हम पर चढ़ा तुम्हारा हो।
लोक-हित-रंग में रँगे हम हों।

तुम उलझते रहो नहीं हम से।
उलझनों में उलझ न हम उलझें।
तुम रहो बार बार सुलझाते।
हम सदा ही सुलझ सुलझ सुलझें।

भेद तुम को न चाहिए रखना।
क्यों हमें भेद हो न बतलाते।
हो कहाँ पर नहीं दिखाते तुम।
क्यों तुम्हें देख हम नहीं पाते।

जो कि तुम हो वहीं बनेंगे हम।
दूर सारे अगर मगर होंगे।
हम मरेंगे, नहीं मरोगे तुम।
पा तुम्हें हम मरे अमर होंगे।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.