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विश्वास / चन्द्र गुरुङ

तुम आई हो तो
मेज पर रखे गुलाब को दिल में सजाओ
कि सुगंधित बने हमारा प्रेम

बरामदे में
ले आओ दो कुर्सियाँ
हम बैठेंगे, कुछ आत्मीय पल बिताएँगे
टेबल के ऊपर
वाइन की बोतल और दो गिलास भी रख देना
बातें करेंगे
जीवन के कुछ अंशों को

देखो तो
अनमने दिखते हैं कपड़े मेरे
अनाथ मालूम होती हैं किताबें, क़लम और पन्ने
लावारिस लाश की तरह पड़े हुए सिगरेट के टुकड़े
बेजान आईना
इन सभी को है
तुम्हारे एक स्पर्श का इन्तजार

अन्धेरी शाम
तुम आ पहुँची हो मेरी दहलीज़ पर अकेली
इस वक़्त मन में
दौड़ रही हैं लहरें प्रेम की

ना,
उस खिड़की को बंद मत करना
येह तो
मेरे दिल का विश्वास है
कि तुम ज़रूर आओगी।